अपने किये की सफ़ाई न दो
जब हो भुगतना, दुहाई न दो।।
दुनियाँ में कोई नहीं है फरिश्ता
ख़ुद को यूँ ख़ुद ही रिहाई न दो।।
कहती है बीवी कि हाथों में माँ के
मेहनत की अपनी कमाई न दो।।
थी आख़िरी सीख रावण ने समझी
ख़ेमे में दुश्मन के भाई न दो।।
ऐबों को अपने छुपा के “बशर” तुम
औरों के हिस्से बुराई न दो।।
दिनेश चंद्र पाठक “बशर”
2 Comments
डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई।
Dinesh Chandra Pathak
बहुत बहुत धन्यवाद महोदया