तुझे याद करने का बस ये सिला है

तुझे याद करने का बस ये सिला है
नया रोज़ क़िस्सा जहां को मिला है।

सतरंगी सपनों की दुनियाँ में हम-तुम
क्या ही नज़र को नज़ारा मिला है।।

उड़ते हैं गलियों में चर्चे हमारे
चाहत भी वल्लाह कैसी बला है।।

तुझे उम्र की साज़िशों से बचा लूँ
दिल में मेरे भी अजब हौसला है।।

मुझे रोज़ कहते हैं घर के बड़े अब
सुधर जा “बशर” अब इसी में भला है।।

दिनेश चंद्र पाठक “बशर”।।

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