निर्दयी

             
भोर की पहली किरन का
संदेशा कुक्कुट ही लाया
फिर क्यों रे तुच्छ मानव !
तूने उसे निवाला बनाया ।
जल को स्वच्छ मीन करती
उसे भी विचरने न दिया
जाल और काँटे से उसका
भी तो वध तूने किया ।
हिरन का स्वच्छन्द चरना भी
न तुझको रास आया
तीर या तलवार से
उसकी भी गर्दन काट लाया ।
नाँक में जो नाथ डाला
बैल नन्दी को बनाया
हाय रे ओ निर्दयी तू
कृत्य यह कैसे कर पाया ।
जल को भी मैला किया
जङ्गलों को काट डाला
बाँध कर नदियों की धारा
विकास कैसा करके लाया ।
धरती की कोख बंजर
स्रोत पानी के भी सूखे
कंक्रीट के वन उगाकर
चैन अपना खुद गँवाया ।
चैन अपना खुद गँवाया।।
(हीराबल्लभ पाठक ” निर्मल “
स्वर साधना संगीत विद्यालय
लखनपुर रामनगर , नैनीताल)

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  • Posted January 14, 2021 11:07 am
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    यथार्थपरक

    यथार्थपरक

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