लक्ष्मी

विपिनभाई सरकारी स्कूल में अध्यापक थे। सेवानिवृत्ति के बाद गाँव में अपने पुश्तैनी घर में आ गये, उनके दो बेटे थे एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर और दूसरा शहर के इन्टर कालेज में लेक्चरर लग गया था। दोनों के विवाह भी विपिन जी ने नौकरी में रहते कर दिये थे। वे दोनों शहर में ही रहते थे,  विपिनभाई और उनकी पत्नी को शहर का रहन-सहन अच्छा नहीं लगता था इसलिए उन्होंने गाँव में ही रहना ठीक समझा। विपिन जी की पत्नी को घुटने का दर्द रहता था सो एक घर का काम करनेवाली महिला चाहिए थी।
       विपिन जी की पत्नी ने पड़ोस में रहनेवाली मंजुला जी, जो गाँव के अस्पताल में नर्स थी से कहा, तो उन्होंने बताया कि पिछले हफ्ते एक लड़की ने मुझसे कहा तो था कि कहीं घर का काम बताना, मुझे मिलेगी तो उससे जरूर कहूँगी। दूसरे दिन मंजुला जी एक लड़की जो लगभग सत्रह-अठारह वर्ष की होगी , को अपने साथ ले आयी आते ही उस लड़की ने दोंनो को नमस्ते की , मंजुला जी ने कहा यही वह लड़की है आप बात कर लीजिए मुझे कुछ और काम से जाना है कहकर वह चली गयीं । कमला जी (विपिन जी की पत्नी) ने उस लड़की से पूछा पहले कहीं घर का काम किया है, तो उसने बताया कि मैं दो वर्ष से घर का काम करती हूँ , जिनके यहाँ काम करती थी वे शहर चले गये इसलिए आजकल खाली हूँ । विपिन जी  ने पूछा , तुम्हें तो पढ़ाई करनी चाहिए थी फिर घर का काम क्यों करती हो तब उसने कहा, जी मैं नौवीं कक्षा में पढती थी दो वर्ष पूर्व पिताजी का देहान्त हो गया माँ बीमार रहती है एक छोटा भाई है जो छटी में पढ रहा है, इसलिए मैने स्कूल छोड़कर घर का काम करना शुरू किया था।
          विपिन जी ने  कहा देखो लड़की हाँ तुम्हारा नाम क्या है,  लक्ष्मी नाम है मेरा उसने बताया,  हाँ तो मैं कह रहा था कि हम तुम्हें एक हजार रुपया महीने का दे सकते हैं और सुबह ठीक दस बजे आना होगा और बारह बजे अपने घर जाओगी फिर शाम को चार बजे से छः बजे तक रहना होगा और भोजन बनाना छोड़कर बाकी घर का सारा काम करना होगा ठीक है । लक्ष्मी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा जी मैं सहमत हूँ,  जहाँ पहले काम करती थी वहाँ तो सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक रहना पड़ता था और पैसे भी पाँच सो रुपया ही देते थे, बाबू जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । ऐसा कहकर वह कुछ रुआंसी होगयी थी फिर बोली अच्छा बाबूजी मैं चलती हूँ सुबह आ जाऊँगी कहकर चली गयी।
          दूसरे दिन सुबह ठीक दस बजने से पन्द्रह मिनट पहले लक्ष्मी आ गयी , पहले उसने दोनों को प्रणाम किया फिर कमला जी से काम पूछा , कमला जी ने कहा देखो लक्ष्मी झाड़ू तो मैने सुबह-सुबह लगा दिया है , जूठे वर्तन पड़े हैं उनहें साफ कर दे और कमरों में पोछा लगा दे । लक्ष्मी ने  फटाफट जूठे वर्तन साफ किये चारों  कमरों में पोछा लगाया,  खिड़कियों पर जाले लगे थे उन्हैं साफ किया, फिर उसने पूछा मांजी कपड़े धोने को हैं ? कमला जी ने कुछ कपड़े रखे थे उसे दे दिये कपड़े धोकर छत में सुखाने डाल आयी । विपिन जी ने कहा लक्ष्मी बारह बजने वाले हैं तुम जाओ और शाम को चार बजे आ जाना।
       शाम को लक्ष्मी आयी तो उसने एक शीशी कमला जी को दी और कहा मां जी कल न इस तेल से आपके घुटनों पर मालिस कर दूंगी , मेरे पिता जी एक वैद्य जी के साथ काम करते थे उन्होंने यह दवाई बनाई और यह एक शीशी पिताजी को भी दी थी। यह सुनकर विपिन जी ने पूछा क्या नाम था तुम्हारे पिता जी का, लक्ष्मी ने बताया कि उनका नाम तो दयाराम था पर लोग उन्हें पण्डित जी कहकर ही बुलाते थे, तब विपिनभाइ ने पूछा क्या वो दामोदर वैद्य जी के यहाँ काम करते थे ? लक्ष्मी ने कहा हाँ बाबूजी! वहीं काम करते थे । यह कहकर वह अपना काम करने लगी , दूसरे दिन उसने पहले काम निपटाया फिर कमला जी से कहा मां जी चलो आपके घुटने पर वह तेल लगा देती हूँ और उसने अच्छी तरह मालिस करने लगी, तो कमला जी को लगा जैसे वह उनकी ही बेटी हो। इस प्रकार एक हफ्ता हो गया तब कमला जी ने विपिनभाई से कहा-यह रोज एक ही सूट पहन कर आती है लगता है इसके पास दूसरे कपड़े नहीं होंगे इसलिए आप शाह जी की दुकान से दो जोड़ी सूट और हाँ यह अपना एक भाई भी बता रही थी सो बारह-तेरह वर्ष का होगा एक सरकारी स्कूल की ड्रैस और एक घर पर पहनने की पैन्ट- बुशर्ट उसके लिये भी ले आना, और हाँ लक्ष्मी की मालिश से मुझे आजकल थोड़ा आराम भी है।
         शाम को विपिनभाई शाह जी की दुकान से कपड़े  ले आये अगले दिन कमला जी ने लक्ष्मी को वह कपड़े और दो साड़ियां देते हुए कहा लक्ष्मी ये साड़ियां अपनी माँ को दे देना और यह पैन्ट-बुशर्ट तेरे भाई के लिये और यह सूट तेरे लिये हैं । यह सब देख लक्ष्मी कुछ अनमनी सी होकर कमला जी की तरफ देखती रही, कमला जी समझ गयीं कि संकोच कर रही है तो उन्होंने कहा अरे रख ले हमने भी गरीबी देखी है फिर हम तुझे नौकर नहीं बेटी समझते हैं और हाँ ये दो सौ रुपये भी रख ले खाने का सामान भी लेते जाना और कल से तू दोनों समय का भोजन यहीं से करके जायेगी, ले उठा यह सब यह कहकर उन्होंने लक्ष्मी को देखा तो उसकी आँखों से अश्रुधारा बह रही थी , कमला जी उठीं और उसके सिर पर हाथ रखकर उसे चुप कराया।
         एक दिन विपिन जी ने लक्ष्मी से कहा कि शाम को अपने भाई को भी साथ ले आना , कुछ पढ़ा दूँगा लक्ष्मी ने खुश होकर जी बाबू जी कहा और काम करने लगी दूसरे दिन वह भाई को साथ लाई। विपिन जी ने उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि घर में तो उसे किशन कहकर बुलाते हैं और स्कूल में उसका नाम कृष्ण कुमार है। ठीक है मैं भी तुम्हें किशन ही कहूँगा अपनी पुस्तक दिखाओ विपिनभाई ने कहा उसने गणित की पुस्तक विपिन जी को दी, गणित के दो सवाल उन्होंने कराये फिर हिन्दी की कापी माँगी कापी देखकर वे थोड़ा चौंके, क्योंकि लेखनी बड़ी सुन्दर थी किशन की, फिर कुछ अंग्रेजी भी पढ़ाई उस बच्चे की कुशाग्रता को देख विपिनभाई बहुत प्रभावित हुए । तबतक कमला जी शाम का भोजन बना चुकी थी उन्होंने अपने और विपिनभाई के लिए अलग निकाल लिया और लक्ष्मी से कहा रसोई में जाओ और दोनों भाई-बहन भोजन कर लो।
         इस तरह छः महीने बीत गये विपिन जी और कमला जी लक्ष्मी के काम और व्यवहार तथा सरलता से बहुत प्रसन्न थे । एक दिन रात के समय बड़ी भारी वर्षा के कारण लक्ष्मी के घर की एक दीवार ढह गयी और उसकी माँ उसमें दब कर परलोक सिधार गयी । विपिन जी उन दोनों बच्चों को अपने घर ले आये और एक कमरा उन्हें रहने को दे दिया ।
        किशन की कक्षा परीक्षा का परिणाम अब्बल आया, विपिनभाई ने उसका दाखिला दसवीं कक्षा में किया और लक्ष्मी से कहा कि तुम भी भाई के साथ-साथ पढ़ा करो फिर तुम्हारा भी हाईस्कूल का फार्म भरेंगे ओवरएज होने के कारण तुम्हारा नाम स्कूल में  नही लिखा जा सकता इसलिए व्यक्तिगत परीक्षा देनी होगी। किशन तो पढ़ाई में अच्छा था ही लक्ष्मी भी कम नही थी, दोनों हाईस्कूल में उतीर्ण हुए प्रदेश स्तर पर किशन प्रथम और लक्ष्मी द्वितीय स्थान पर रही।
         उधर विपिन जी के दोनों बेटे अपने ही में मस्त थे कभी – कभार कमला जी ही फोन पर हाल-समाचार पूछ लेती थी , बेटों या बहुओं की ओर से फोन भी नहीं आता था । लक्ष्मी और किशन ने बारहवीं की परीक्षा भी अच्छे नम्बरों से उतीर्ण कर ली थी। इस तरह पाँच-छः वर्षों का समय बीतते देर नहीं लगी। एकदिन विपिन जी के पुराने मित्र सुबोध जी जो राजस्व विभाग मे बड़े बाबू थे और सेवानिवृत हो चुके थे बाजार में मिल गये । दोनों ने कुशलक्षेम के बारे एक -दूसरे से पूछा, फिर विपिनभाई ने सुबोध जी से घर चलने का आग्रह किया तो सुबोध जी बोले अवश्य इसी बहाने भाभी जी से भी मिल लूँगा । दोनों घर आये आहट पाकर लक्ष्मी ने दरवाजा खोला, वे दोनों बैठे ही थे कि लक्ष्मी पानी लेकर आयी और बोली बाबू जी चाय बनाऊं? तो विपिन जी ने  सिर हिलाकर सहमति देते हुए कहा कमला से कहना कि सुबोध जी आये है , जी अच्छा कहकर लक्ष्मी चली गयी।  सुबोध जी ने कहा यह लडकी कौन है ? तुम्हारी पोती है क्या ? तभी कमला जी आ गयी एक-दूसरे से अभिवादन के पश्चात सुबोध जी बोले पूरे दस वर्षों बाद हम लोग आज मिल रहे हैं, जिन्दगी की भाग-दौड़ में समय कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता । अच्छा विपिन जी मेरा तो एक ही बेटा है जिसने इसी वर्ष ग्रेजुएसन पूरा किया है तुम्हारा तो देखा हुआ ही है।   उसके लिये कोई लड़की बताओ , लड़की संस्कारी हो भले ही गरीब घर से हो चलेगी।
             तभी लक्ष्मी चाय लेकर आयी, चाय रख कर वह चली गयीं । चाय पीते-पीते विपिन जी बोले सुबोध जी यह लड़की कैसी रहेगी? सुबोध जी ने कहा हाँ तो तुमने यह नहीं बताया कि यह है कौन? तुम्हारी तो कोई बेटी नहीं थी । विपिन जी ने कहा बताऊंगा पहले तुम यह बताओ कि लड़की तुम्हें कैसी लगी । सुबोधजी ने कहा भइ लड़की तो ठीक है पर है किसकी ? विपिनभाई ने कहा – तुम दयाराम पण्डित जी को तो जानते थे ? सुबोध जी ने कहा हाँ-हाँ  जो दामोदर वैद्य जी के यहाँ काम करते थे? विपिन जी ने कहा हाँ यह उन्हीं की लड़की है , और अब यह मेरी बेटी है, सुबोध जी ने कहा यह क्या पहेली है भइ पण्डित जी की बेटी तुम्हारी बेटी यह क्या चक्कर है? विपिन जी ने जब उन्हैं पूरी कहानी सुनाई तो सुबोध जी हतप्रभ से रह गये, और कहने लगे धन्य हैं आप , इतने विशाल हृदय वाले आप दोनों महापुरुषों को मैं धन्यवाद् कहता हूँ और प्रणाम भी करता हूँ,  किसी गरीब और अनाथ को सहारा देकर आपने बहुत ही बड़ा पुण्य का काम किया है, दयाराम पण्डित जी की सरलता और निष्ठा आज आप जैसे गुणी लोगों के माध्यम से फलित हो गयी।
          विपिन जी बोले अच्छा-अच्छा वह सब तो ठीक है यह बताओ कि मेरी बेटी तुम्हें पसन्द है या नहीं? सुबोध जी बोले, क्या कहते हो विपिन जी मैं तो आपके चरण धोकर पीना चाहता हूँ । मेरी समस्या का समाधान हो गया , लगता है मैं आज बहुत ही अच्छे मुहूर्त में घर से निकला। ठीक है मुझे यह सम्बन्ध स्वीकार है, विपिन जी बोले – अरे-अरे इतने भावुक भी मत बनो और अपने बेटे को पहले लड़की दिखाओ । सुबोध जी ने कहा- ठीक है कल ही बेटे को लेकर आता हूँ , ऐसा कहकर सुबोध जी चले गये।
         सुबोध जी के जाने के बाद विपिनभाई ने कमला जी से कहा कि कल सुबोध जी अपने बेटे को लेकर आयेंगे कदाचित् उनकी पत्नी भी साथ में हो थोड़ी तैयारी करके रखना। वैसे अगर अनिल (सुबोध जी का बेटा) को लक्ष्मी पसन्द आ गयी तो अच्छा रहेगा, अच्छे लोग हैं,  कमला जी ने भी कहा हाँ लड़का भी सुन्दर और सौम्य है, देखो फिर क्या होता है।
          दूसरे दिन सुबोध जी उनकी पत्नी और बेटे के साथ आ गये , अनिल ने दोनों को प्रणाम किया कमला जी ने सुबोध बाबू की पत्नी पुष्पा जी से कहा- आप तो कभी आती नहीं थी, चलो इसी बहाने आप भी आ गयीं अच्छा हुआ , पुष्पा जी ने कहा -कमला जी क्या बताऊँ पिछले महीने जब ये सेवानिवृत हुए हैं तब से जरा शान्ति मिली है , नहीं तो घर काम से समय ही कहाँ मिलता था।
         कमला जी ने कहा हाँ यह तो सही कहा आपने , अच्छा आप लोग बैठो मैं अभी आई। कमला जी अन्दर चली गयी , लक्ष्मी चाय बना रही थी और रो भी रही थी कमला जी ने देखा तो कहा अरे पगली तू ये रोती शक्ल लेकर जायेगी चाय देने ? लक्ष्मी ने कहा मांजी इतनी भी जल्दी क्या थी मुझे घर से निकालने की ? तब कमला जी ने कहा बेटा लड़की को तो एक दिन घर से निकालना ही पड़ता है,  जल्दी निकल जाय ठीक है । फिर उसके आँसू पोंछे और चाय मिठाई ट्रे में सजाकर कहा जाओ यह बाहर देकर आओ । लक्ष्मी चाय लाई और मेज पर रख कर एक कप पहले सुबोधजी को फिर अनिल को और फिर और एक कप पुष्पा जी को दिया, उसके बाद विपिन जीको दिया। चाय लेकर विपिन जी ने कहा चलो सुबोध जी हम छत में बैठेंगे इन दोनों को एक-दूसरे का परिचय जानने दीजिये, और पुष्पा जी आप भी अन्दर अपनी सहेली के साथ गप्पें लगाइये।
         तब अनिल ने लक्ष्मी से कहा पढ़ाई कहां तक की लक्ष्मी ने कहा इसी वर्ष बारहवीं पास किया है, अभी आई कहकर अन्दर गयी और एक नोटबुक लेकर आई और कहा कि हमारी व्याह की बात चल रही है परन्तु कदाचित् आप मुझे इस घर की बेटी समझ रहे होंगे पर मैं इनकी नौकरानी हूँ,  यह देखिये कहकर उसने नोटबुक का एक पन्ना खोलकर दिखाया जिसमें विपिन जी घर खर्च का हिसाब लिखते थे,  उस पन्ने में (1000 रुपये लक्ष्मी के नाम जमा) हर महीने की पहली तारीख के साथ लिखा था । अनिल ने कहा मुझे पिताजी ने सब बता दिया है, फिर भी तुम्हारी सरलता मुझे बहुत अच्छी लगी और तुम उससे भी अधिक..ऐसा सुनते ही लक्ष्मी शरमाते हुए अन्दर भाग गयी।
       तब तक विपिन जी और सुबोध जी भी आ गये कमला जी पुष्पा जी को लेकर आयी और बोली कि पुष्पा जी को तो लक्ष्मी पसन्द है, अनिल बेटा तुम बताओ तुम्हारा क्या कहना है, अनिल ने कहा मां और बाबू जी जैसा कहेंगे वही करूँगा तब विपिन जी ने कहा ठीक है फिर बात पक्की हुई परन्तु मैं एक बात कहना चाहूँगा कि लक्ष्मी की इच्छा होगी तो आपको उसकी पढ़ाई जारी रखनी पड़ेगी,  इस बात पर उन तीनों ने अपनी सहमति दे दी । सुबोधजी जी ने कहा विपिन जी मैंने कल शाम ही जोशीजी (पण्डित) से बात की थी एक मुहूर्त तो पन्द्रह दिन बाद का निकल रहा है और दूसरा तीन महीने बाद का है । इस पर विपिन जी ने कहा, हाँ मैने भी यहां तिवारी जी से पूछा था और वो कह रहे थे कि दूसरे से यह पहले वाला मुहूर्त अच्छा  है बाकी आप बताइये कब आ रहे हो बारात लेकर मैं इस पहले मुहूर्त के लिये भी तैयार हूँ । इस प्रकार पहले मुहूर्त वाली बात पक्की हो गयी। सुबोध जी ने कहा फिर ठीक है अब  हम चलते हैं पन्द्रह दिन बाद मिलते हैं सभी ने  हँसते हुए विदा ली।
            विपिनभाई ने शादी के लिये कोई कमी नही छोड़ी, अपनी बेटी समझ कर उन्होंने व्यवस्था की, अपने बेटों को भी  सूचना दी किन्तु नौकरी का बहाना बना कर वे नहीं आये। बिदाई के समय विपिन जी ने अनिल को एक रशीद देते हुए कहा कि अगले हफ्ते शहर जाकर शो-रूम से गाड़ी ले आना , यह उसीकी रसीद है। फिर लक्ष्मी के हाथ में एकलाख का चैक देते हुये  कहा कि यह तुम्हारा वेतन का पैसा है, इसे रख लो, तब रोते हुए लक्ष्मी ने कहा ठीक है मैं रख लेती हूँ परन्तु आपको मुझे एक वचन देना होगा। विपिन जी ने कहा हाँ-हाँ कहो कैसा वचन दूँ तब लक्ष्मी ने  कहा यदि आप मुझे बेटी नहीँ कहेगें तो मैं इस चैक को रख लेती हूँ विपिन जी ने कहा मैने तेरा कन्यादान किया है बेटी कैसे नहीँ कहूँगा,  यह सुनते ही लक्ष्मी ने उस चैक के दो टुकड़े कर दिये। अब विपिन जी के आँखो से अश्रुधार बही तो रुकने नाम ही नहीं लिया। खैर बारात बिदा हो गयी।
         लक्ष्मी की शादी हो जाने के बाद विपिन जी किशन को लेकर उसके टूटे घर पर ले गये जो बिल्कुल खंडहर में तब्दील हो चुका था। विपिन जी ने किशन से पूछकर उस जगह पर सीमांकन किया और फिर किशन से कहा तुम रामसिंह ठेकेदार को जानते हो तो किशन ने हाँ कहा तब विपिन जी ने कहा जाओ उसे बुला लाओ , आधे घन्टे में किशन ठेकेदार को बुला लाया तो विपिन जी ने वह जगह दिखाते हुए ठेकेदार से कहा कि इतनी जगह में कितने कमरे निकल सकते हैं? ठेकेदार ने जगह को अच्छी तरह देखा और कहा बाबूजी इसमें तीन बड़े और वो कोने की तरफ एक छोटा कमरा निकल सकता है, विपिन जी ने कहा कितने समय में तैयार कर दे सकते हो, तो ठेकेदार ने बताया कि छः-सात महीने में तैयार कर दूँगा । विपिन जी ने कहा ठीक है शाम को घर आकर एडवांस ले जाना और जितनी जल्दी हो इसे बनाना है।
           ठेकेदार ने भी तत्परता दिखाते हुए काम शुरू किया ठीक छः माह में तैयार कर दिया विपिन जी ने उसमें पुस्तकालय खोल दिया जिसका नाम उन्होंने दयाराम गंगादेवी पुस्तकालय रखा ( गंगादेवी लक्ष्मी की माँ का नाम था) विपिन जी ने उस पुस्तकालय में धार्मिक एवम् पाठ्यक्रम की पुस्तकें रखनी शुरू कर दी थी।
           उधर अनिल ने पोस्ट ग्रेजुएसन कर लिया और लक्ष्मी तथा किशन की ग्रेजुएसन पूरी हो चुकी थी। तीनों ने प्रान्तीय सेवा के लिए अप्लाई किया और एक साथ अच्छी मेरिट से निकल भी गये। विपिन जी ने अपना घर किशन के नाम कर दिया और पत्नी को साथ लेकर वृन्दावन चले गये। इति आरम्भ
         __ हीराबल्लभपाठक “%निर्मल”

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