लाठी एक गुण अनेक

लाठी एक गुण अनेक

लाठी बहुतै काम की, लाठी राखो साथ ।
दुश्मन को कबू करे, वाकै अनेक हाथ।।
बुढापे में जब कमर झुके, लाठी का सहारा ।
लाठी देख के  साँप भी, कर लेता किनारा।।
झूठा भी जब लाठी देखे, उगले सारा सच।
लाठी के आगे भइया, कोई न सकता बच।।
लाठी दीखे गुरु के हाथ, याद रहे पूरा पाठ ।
लाठी के बल चढ़े चढ़ाई, तनिकौ नहीं विषाद।।
तेल लगी हो यदि लाठी, कांपे दुर्जन थर थर।
धूर्तन को कोनो कहिये, देखत ही आवे ज्वर।।
लाठी भैया बड़ी रंगीली, रंग अनेक दिखाये।
बकरी गाय संग चरवाहा, और कुत्तों से बचाये।।
राह दिखावे सूरदास को, अपंग का सहारा।
भैया इसीलिए ज्ञानीजन, रखते अपने द्वारा।।
जबलौं लाठी संग में,  करो न कछू विचार।
‘निर्मल’ या लाठी कारण, सज्जन हो गये पार।।
                          _ हीराबल्लभ पाठक ‘निर्मल’

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