डॉ0 शशि जोशी जी की सुंदर कविता
सरल मधुर व्यवहार है हिंदी!
अपना तो शृंगार है हिंदी !
भावशिखर से गिरती झर-झर..
शीतल जल की धार है हिंदी !
“सूर” की “कान्हा” बनकर किलकी,
मीरा की स्वरधार है हिंदी !
प्रेम से “खुसरो” ने अपनाया,
स्नेहिल रसधार है हिंदी!
कला सिखाती है जीवन की,
विपुल ज्ञान भंडार है हिंदी !
“शशी” कहीं शीतल कोमल है,
कहीं प्रबल हुंकार है हिंदी!
जली अखंड ज्योति सी जगमग ,
और बनी जयकार है हिंदी !
डॉ.शशि जोशी “शशी”
राजकीय कन्या उ. मा. वि.
बांगीधार, सल्ट,अल्मोड़ा