चाँद और सपना

देखो कितना प्यारा             
लगता है चाँद गगन में
जैसे मुखड़ा प्रियतम का
उतरा हो दर्पण में । देखो…
माँग सितारों ने भरी
झिलमिल-झिलमिल करती है
दुविधा मन की को जाने
इन भीगी पलकों  में । देखो…
इस चंदा की रीत अनोखी
घटता है फिर बढ़ता है
मैं पागल देखा किया
इसको मेरे अपनों में । देखो …
हाय तेरा मुस्कुराना
गज़ब ही ढा जायेगा
पूर्णिमा का चाँद तू
फिर आयेगा सपनों में । देखो …
लगता नहीँ कभी
उतरेगा ये धरती पर
“निर्मल” तू क्यों खोया
ऐसे मीठे सपनों में । देखो…
(हीराबल्लभ पाठक ” निर्मल ” ,
स्वर साधना संगीत विद्यालय
लखनपुर रामनगर, नैनीताल)

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