निवेदन


हे परमेश्वर! हे जगदीश्वर!
जग है सारा तुमपर निर्भर
साकार हो तुम और निर्विकार भी
जल थल के तुम ही आधार । हे परमेश्वर!
सृष्टि बनाई जगत् रचाया
पशु पक्षी और वनचर जाया
लता वृक्ष और पुष्प बनाये
धरती के शृंगार सजाये
सोच तुम्हारी अपरम्पार। हे परमेश्वर!
भूल एक कर दी प्रभु मेरे
जो तूने मानव को बनाया
यह तो दम्भी और पाखण्डी
निर्लजता की सीमा लाँघी
छल छद्म द्वेष से भरा हुआ
इसका सारा व्यवहार । हे परमेश्वर!
मैं भी तेरा हो न सका
इस जग की देखी जो रीत
लहरों में खो गया हूँ जैसे
बालू के भीतर दबा सीप
हूँ तो मानव ही आखिर
मुझपर भी छाया अहंकार । हे परमेश्वर!
मर्यादित हैं जीव चराचर
पशु-पक्षी मर्यादित रहते
मर्यादित रहते सागर
मानव ही मर्यादा भूला
करता है नित पापाचार। हे परमेश्वर!
हे प्रभु! चाहे कृष्ण बनो
हलधर या परसुराम बनो
अर्जुन या फिर दधीच ही सही
या शबरी के राम बनो
” निर्मल ” करने भारतभूमि को
आओ तो सही इस धरा पर
लेकर फिर अवतार।
लेकर फिर अवतार ।।
// हीराबल्लभ पाठक,  स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर रामनगर , नैनीताल //

4 Comments

  • Posted December 27, 2020 10:44 am
    by
    Dinesh Chandra Pathak

    सुंदर रचना। सादर प्रणाम।

  • Posted December 28, 2020 4:41 pm
    by
    Sarita pant

    Very nice devotional thought

  • Posted January 15, 2021 1:59 pm
    by
    Hirapathak

    बहुत-बहुत धन्यवाद् सहित जय श्रीराम

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