आज मेरे घर प्रीतम आये,
करूंगी सोला शृंगार री सखि ।
सेज सजाओ फूलन से और,
बांधो बन्दनवार री,
प्रीतम मेरा छैल छवीला,
डारूंगी तन मन वार री सखि।
कंगना झुमका पहिर के जाऊँ,
माँग सिन्दूर भराऊंगी,
गले लगाऊं प्रीतम को,
और करूँ मनुहार री सखि।
उस प्रीतम की रीत अनोखी,
गोरा है ना काला है ,
श्यामल छवि अटकी अंखियन में,
अमर हो गया नेह री सखि।
“निर्मल”कहता सुनो सखीरी,
मीरा सी बनजाना तुम ,
मन से सुमिरन करलो उसका,
भर देगा भण्डार री सखि।
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__हीराबल्लभ पाठक “निर्मल”