लाख की चूड़ियाँ

“लाख की चूड़ियां”

कक्षा-8
विषय-हिन्दी
(कहानी का कविता रूपान्तरण)

वो बैठता बूढ़े नीम तले,
हवा चलती हौले -हौले.
गुड़-गुड़ हूक्का उसका
बोले,
लकड़ी की चौखट
डग-मग डोले.
बगल में भट्टी
दहकाया करता,
रोज लाख
पिघलाया करता.
सभी उसे काका,
कहके बुलाते,
रंग-बिरंगी
चूड़ी बनवाते,
गांव-गांव और,
शहर-शहर में,
चूड़ियाँ बिकती,
हर अवसर में.
सूहाग की चूड़ी
खूब सुहाती,
नव-वधु के मन,
को वो भाती.
वस्त्र, अनाज,
रुपये मिलते,
बच्चों के मुरझाये,
मुख खिलते.

    कांच कीचूड़ियां,
    उसे ना भाती,
   लाख की चूड़ी,
    सबको  लुभाती.

बाप दादा का,
पुराना पेशा,
छाेड़ देंगे हम,
ऐंसे कैसा.
मशीनी युग का,
है बोल -बाला,
पिसता हर-दम,
हथ-करघे वाला.

सरिता मैन्दोला
रा.उ.प्रा. वि.गूमखाल
पौड़ी गढ़वाल
वि.ख़ं. द्वारीखाल
उत्तराखंड

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