लोग कहते हैं सुधरने को तुझे

लोग कहते हैं सुधरने को तुझे
ऐ “बशर” ऐब क्या लगा है तुझे ??

प्यार के साथ ज़माना भी मिले
नहीं मुमकिन, कोई बतला दो उसे।।

जूतियों के फटे तलवों में कई
झुलसे पैरों का पता भी है मुझे।।

बुलबुलों ये है पत्थरों का शहर
प्यार के गीत सुनाओगे किसे ??

राम बनकर भी कोई आए अगर
आज के लोग तो झुठला दें उसे।।

घर है बेटे का अलग, शौहर से
एक माँ हाय चुने भी तो किसे??

दिनेश चंद्र पाठक “बशर”

4 Comments

  • Posted February 5, 2021 9:36 am
    by
    डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

    बहुत सुन्दर सृजन , हार्दिक बधाई

    • Posted February 5, 2021 1:01 pm
      by
      Dinesh Chandra Pathak

      हार्दिक आभार एवं सादर नमस्कार

  • Posted February 5, 2021 10:20 am
    by
    Rashmi Agrawal

    बहुत अच्छी गजल है , बहुत सुंदर शब्दों का प्रयोग किया गया है।

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