लोग कहते हैं सुधरने को तुझे
ऐ “बशर” ऐब क्या लगा है तुझे ??
प्यार के साथ ज़माना भी मिले
नहीं मुमकिन, कोई बतला दो उसे।।
जूतियों के फटे तलवों में कई
झुलसे पैरों का पता भी है मुझे।।
बुलबुलों ये है पत्थरों का शहर
प्यार के गीत सुनाओगे किसे ??
राम बनकर भी कोई आए अगर
आज के लोग तो झुठला दें उसे।।
घर है बेटे का अलग, शौहर से
एक माँ हाय चुने भी तो किसे??
दिनेश चंद्र पाठक “बशर”
4 Comments
डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
बहुत सुन्दर सृजन , हार्दिक बधाई
Dinesh Chandra Pathak
हार्दिक आभार एवं सादर नमस्कार
Rashmi Agrawal
बहुत अच्छी गजल है , बहुत सुंदर शब्दों का प्रयोग किया गया है।
Dinesh Chandra Pathak
बहुत बहुत धन्यवाद दीदी