वन्दे मातरम्
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सूरज निकला सुबह सबेरे,चहक उठी हैं चिड़ियां।
मेरे घर आंगन में देखो, महक उठी हैं कलियां।
रात गयी और बात गयी, खेलन लागी सखियां ।
आओ नन्हीं आओ मुन्नी, प्यारी है यह दुनियां ।
खेल-खेल में शहर बसाया, और बना दी रेल
कठपुतली भी खूब नचायी , हो गयी रेलमपेल।
यह धरती है राम कृष्ण की,भूल नहीं तुम जाना
अर्जुन ने भी धर्म की खातिर, रण करने का ठाना।
वीर शिवा और महाराणा को,भूल नहीं तुम जाना।
राज भगत सुखदेव बोस का , स्वप्न है पूरा करना।
एक था आज़ाद जिसको, छल करके है मारा
इन्ही वीरों ने दिया है हमको, वन्दे मातरम् नारा।
देस की खातिर प्राण दिये , पर हार तनिक ना मानी।
बच्चे को भी बांध पीठ पर , कूदी रण में लक्ष्मी रानी।
सेना के जवान डटे हैं, सीमाओं पर सीना ताने
ना घर-परिवार की चिन्ता, नहीं कोई परेसानी।
इन सबका उपकार है हमपर, इन्हें भुला ना देना।
जब तक लहू है इस शरीर में, जय भारत की कहना।
जिसके लहू में देशभक्ति है, वही वीर वही ज्ञानी
जीने को पशु भी जीता है, करना मत तुम नादानी।
…………..जय भारत, वन्दे मातरम् …………
_ हीराबल्लभ पाठक ‘निर्मल’