ग़ज़ल – तमाम मुश्किलें, मजबूरियाँ, हालात रहने दे

तमाम मुश्किलें, मजबूरियाँ, हालात रहने दे

प्यार कर बैठा हूँ तुझसे, तो प्यार रहने दे।।

जज़्बा ए इश्क़ नहीं उम्र का मोहताज़ कभी

तू अपनी उम्र का होश ओ हिसाब रहने दे।।

इश्क़ महबूब से जो है तुझे, तो सामने आ

जो है दुनियाँ से मुहब्बत, हिजाब रहने दे।।

आँखें पढ़ते थे जो दुनियाँ में, अब वो लोग कहाँ ?

बंद दिल की “बशर” तू भी किताब रहने दे।।

दिनेश चंद्र पाठक “बशर” ।।

2 Comments

  • Posted January 6, 2021 5:47 am
    by
    रोशन बलूनी

    बहुत सुंदर गजल मान्यवर🙏🙏🙏🌹🌷🌺🌺🌺🌺🌺

    • Posted January 15, 2021 1:43 pm
      by
      Dinesh Chandra Pathak

      बहुत बहुत धन्यवाद बलूनी जी

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