तमाम मुश्किलें, मजबूरियाँ, हालात रहने दे
प्यार कर बैठा हूँ तुझसे, तो प्यार रहने दे।।
जज़्बा ए इश्क़ नहीं उम्र का मोहताज़ कभी
तू अपनी उम्र का होश ओ हिसाब रहने दे।।
इश्क़ महबूब से जो है तुझे, तो सामने आ
जो है दुनियाँ से मुहब्बत, हिजाब रहने दे।।
आँखें पढ़ते थे जो दुनियाँ में, अब वो लोग कहाँ ?
बंद दिल की “बशर” तू भी किताब रहने दे।।
दिनेश चंद्र पाठक “बशर” ।।
2 Comments
रोशन बलूनी
बहुत सुंदर गजल मान्यवर🙏🙏🙏🌹🌷🌺🌺🌺🌺🌺
Dinesh Chandra Pathak
बहुत बहुत धन्यवाद बलूनी जी