है तकाज़ा इश्क़ का अब दोस्त बनके ही रहो
कह रही है दिलरुबा अब दोस्त बनके ही रहो।।
जो कि मेरे नाम से मशहूर थी होने लगी
वो कहीं कर आई वादा, दोस्त बनके ही रहो।।
दिल कहे कि पेंच लड़ ले, अक़्ल कहती सोच ले
कट न जाए तेरा मांझा दोस्त बनके ही रहो।।
कल अचानक पूछ बैठी आके उसकी सहचरी
बोल अब क्या है इरादा, दोस्त बनके ही रहो।।
सोचता हूँ कि “बशर” कट जाएगी ये ज़िंदगी
थोड़ा कम या थोड़ा ज़्यादा, दोस्त बनके ही रहो।।
दिनेश चंद्र पाठक “बशर”
संगीत अध्यापक।।