इश्क़ का लुत्फ़ इतना जाना है
शेर कहने का इक बहाना है।।
ढूँढता हूँ हसीन सी सोहबत
गीत चाहत पे इक बनाना है।।
इस क़लम के कमाल के सदके
कितनों के हुस्न को सँवारा है।।
देख लहराते उनके आँचल में
कितने नग़मों का ताना-बाना है।।
सामने हुस्न, हाथ में हो क़लम
ऐ “बशर” ख़्वाब क्या सुहाना है।।
दिनेश चंद्र पाठक “बशर”।।
7 Comments
Jayanti Sundriyal
Bahut khoob
Dinesh Chandra Pathak
हार्दिक आभार
डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
बहुत सुंदर
डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
अच्छा लिखा, हार्दिक बधाई
Dinesh Chandra Pathak
हार्दिक आभार
Kamlesh Kandpal
वाह वाह.. अतुलनीय 💐💐🌹
Dinesh Chandra Pathak
हार्दिक आभार