नज़र में उसकी मुहब्बत का इशारा भी न था

नज़र में उसकी मुहब्बत का इशारा भी न था
बात करना यूँ मेरे दिल को गवारा भी न था।।

दोस्त करते रहे चर्चे तेरी मुहब्बत के
मुस्कुराने के सिवा पास में चारा भी न था।।

वो जो इतराया करे था जवान बेटों पे
उम्र ढलने लगी तो कोई सहारा भी न था।।

माँ का एहसास उस से पूछ “बशर”
नज़र को जिसकी कभी माँ ने उतारा भी न था।

दिनेश चंद्र पाठक “बशर”।।

1 Comment

  • Posted April 30, 2021 2:33 pm
    by
    नीलाम्बरा.com

    बहुत सुन्दर रचना

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