मैं तेरी निग़ाह में बुरा ही सही

मैं तेरी निग़ाह में बुरा ही सही
सिर्फ़ इंसां हूँ मैं, ख़ुदा भी नहीं।।

उसका दावा कि जानता है मुझे
जिसने मुझको कभी सुना भी नहीं।।

दो घड़ी का ही साथ उनका था
कुछ कहा भी नहीं, सुना भी नहीं।।

इश्क़ करके हुआ “बशर” रुसवा
वैसे दुनियाँ में ये बुरा भी नहीं।।

दिनेश चंद्र पाठक “बशर”
संगीत अध्यापक।।

2 Comments

  • Posted September 4, 2021 7:07 am
    by
    डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

    बहुत अच्छी रचना

    • Posted September 4, 2021 4:45 pm
      by
      Dinesh Chandra Pathak

      बहुत बहुत धन्यवाद महोदया

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