मैली इस तन की चादर को
धोऊं किस पानी से
कौनो जतन बताओ मुझको
उजली होवे फिर से। धोऊं किस पानी से
ज्ञान नहीं कोई ध्यान नहीं है
ना जप तप ना पूजा
मारग कठिन है प्रभु से मिलन का
तारण हो किस विधि से। धोऊं किस पानी से
मैं वैराग बन न सका प्रभु
ना जोगी संन्यासी
पापों का पुतला बन करके
भटक रहा जन्मों से। धोऊं किस पानी से
“निर्मल” के प्रभु घट घट वाशी
दास पै किरपा कीजै
एकबार प्रभु मुझे निहारो
पार करो इस भव से। मैली…
(हीराबल्लभ पाठक “निर्मल”
स्वर साधना संगीत विद्यालय
लखनपुर रामनगर, नैनीताल)