शिक्षक

शिक्षक, गुरु, आचार्य,
ये नहीं मात्र शब्द
नहीं मात्र एक सामाजिक संबंध
यह है एक आस
आस यही, कि सम्भव है,
सम्भव है हर प्रश्न का हल
जो जीवन कर रहा है प्रतिपल,
सहारा यह उस हाथ का
गीली मिट्टी जो काढ़ता
निर्मित करता रूप सुहाने
रंग ज्ञान के वारता।।

ज्ञानतेज से सूर्य से तपता
जो सबको नवजीवन देता
जो कोई संसर्ग में आता
उसको ही आलोकित करता।।

निज आचार से जो सिखलाता
वो ही तो आचार्य कहाता
मन औ बुद्धि परिष्कृत करता
आत्मज्ञान का दीप जलाता।।

कृष्ण, कबीर हों या हों तुलसी
सबने तुमको शीश नवाया
देवों से पहले गुरुपद में
सबने अपना ध्यान लगाया।।

आज नमन करता मैं उनको
जिनसे भी कुछ ज्ञान है पाया
 हर शिक्षक को करता वंदन
जिसने भी मुझको अपनाया।।

  दिनेश चंद्र पाठक "बशर"

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